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Wednesday, 15 May 2013

किसने  देखी  है  तड़प उस प्रेमी हिम शिखर की 

बह चली  पिघल पीड़ा  उस प्रेमोन्नत  शिखर की 


कौन सुनता है वो चीखें टूटकर गिरते  शिखर की 


गर्जना को गीत कहना अगति है प्रेमी  शिखर की 



केदारनाथ "कादर"
आओ सखी तुम तीर गंग के , हाथों में ले अर्चन की थाली 

पूजा कर वरदान मैं मांगूं , सजाऊँ मांग में सूर्य की लाली 



अविरल प्रेम बहे जीवन में 


मत्स्य सरीखी खुशियाँ तैरें 


कमल सुशोभित हों मनांगन 


सुंदर वरदान ऐसा मैं मांगूं 



देह तेरी चन्दन हो जाये 


सांसों में सौरभ भर जाये 


दन्त पंक्ति चमकें सदैव ये 


हँसे सदा आँखों की प्याली 



आओ सखी तुम तीर गंग के , हाथों में ले अर्चन की थाली 


पूजा कर वरदान मैं मांगूं , सजाऊँ मांग में सूर्य की लाली 



शोक कभी न मन में आये 


द्वेष कभी न पाँव जमाये 


कभी विरह की छाँव न हो 


ऐसा सुंदर वरदान मैं मांगूं 



गीत सदा अधरों पर साजें 


आँगन में पायल धुन गाजें 


सदा सुबुद्धि संग विराजे 


श्रद्धा का वरदान मैं मांगूं 



आओ सखी तुम तीर गंग के , हाथों में ले अर्चन की थाली 


पूजा कर वरदान मैं मांगूं , सजाऊँ मांग में सूर्य की लाली 



जीवन संध्या तक अपना 


मधुमास निर्बाध चले यह 


मोह - तृष्णा उगे कभी न 


मोक्ष सजाती साँझ ढले हर 



जीवनलक्ष्य सभी सध जायें 


सांसें सब सार्थक हो जायें 


देहधारण का काज सजे सब


मंगलमय हो जीवन पाली 



आओ सखी तुम तीर गंग के , हाथों में ले अर्चन की थाली 


पूजा कर वरदान मैं मांगूं , सजाऊँ मांग में सूर्य की लाली



केदारनाथ "कादर"


अजब मशरूफियत है , जब माँ बुलाती है 

बीबी एक बार बुलाये दो बार जाते हैं हम 



केदारनाथ "कादर "
हमारा रात रात भर जागना उन्हें कोई शौक लगता है 

बुरी आदत है हमको "कादर" सोये जहन जगाने की 



केदारनाथ "कादर"
अपनी अपनी कह चुके जब ईश के बारे में सब 

हाथों में देकर आईना उसने कहा मुझे देख लो 

केदारनाथ "कादर"

Friday, 26 April 2013

वो जोड़कर चले हैं माल-ओ -असवाब इस कदर

अगर सौ बार जन्म लें "कादर" गिन न सकेंगे

उनकी हवस तो देखिये हर एक टुकड़े पर लगी है
मिल जाये गर जहान "कादर" सुखी हो न सकेंगे

उनको काटने का हुनर "कादर" मिला है विरासती
एक फूल का पौधा भी वो कभी यहाँ वो न सकेंगे

रहनुमा होने का वो दम भरते हैं बदस्तूर दोस्तों
घायल किसी को दो घूँट पानी "कादर" दे न सकेंगे

बद-दुआएं भी लौट आती हैं टकराकर उनसे सर
"कादर" पत्थर के सनम हैं मेरे वो मर न सकेंगे

उनको जुदा करने का है शौक बहुत "कादर"
देखना दोस्त वो खुद से भी कभी जुड़ न सकेंगे


केदारनाथ "कादर"

पेट की भूख तक नहीं सिमित, उनकी दाढे बड़ी मक्कार हैं " कादर"


पेट भर खाकर उनकी अक्सर, जिस्म की हैवान भूख जाग जाती है



केदारनाथ "कादर"
वो मेरी मुफलिसी को देखकर रो दिए ,


मुझसे नहीं पैसे से मुहब्बत थी शायद,

मेरे घर में अभी भी मेरी माँ रहती है ,

मेरी मुहब्बत का यकीन कैसे हो "कादर"



केदारनाथ "कादर"
अब भी उनको हमारी चाहत है "कादर "


तभी तो रोज जी भर के कोसते हैं हमें



केदार नाथ "कादर"

बहुत जरुरी है अब हमारे युवाओं के लिए

बहुत जरुरी है अब हमारे युवाओं के लिए


दिल, जिगर, फेफड़ों की कैद से निकलना

जुल्फ, रुखसार, पिस्तान से अलग सोचना

सिर्फ शायरी इन्ही पर नहीं होती मेरे दोस्त

खुदा ने बक्शी हैं दो आँखें हर आदमी को

एक आँख से दुनिया को देखो मेरे दोस्त

अपने शब्दों में इसे भी कहो तब देखना तुम

तुम्हें खुद पर प्यार आ जायेगा मेरे दोस्त

तुम्हारी सोच के पंख फैलाकर उड़ो जरा

तौलो तो जरा तुम कहाँ हो इंसानियत में





केदारनाथ "कादर"

Tuesday, 19 March 2013

नौजवान

नौजवानों ने अज़ब सा देखो उजाला कर दिया

सूखे दीयों में तेल उम्मीद का दुबारा भर दिया

जिन घरों में पसरा था मातम का साया ग़ज़ब
अपनी हिम्मत से हँसी का एक पौधा धर दिया

अब जमाना मेहनत का है सबको सिखाया यही
नौजवाँ इस सोच ने सब कुछ निराला कर दिया

अब समझ आई है आजादी सुभाष आजाद की
हारी हुई हर सोच को हमने हिमाला कर दिया

मंदिर-ओ-मस्जिद का नहीं अब कोई झगडा बचा
जमजम-ओ-गंगाजल हमने एक प्याला कर दिया

हम हैं कायल शान्ति के पर न खद्दर पर यकीन
झूठ के दरिया को अब हमने नाला कर दिया

अब न कोई लूट पाए अपनी मेहनत का धन
अपना मुकद्दर "कादर" हाथों के हवाले कर दिया



केदारनाथ "कादर"