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Tuesday, 8 March 2011

आज


वक़्त बदलते देखा भैया मैंने आज


अब इमान पे भारी है रोटी की गाज



पहले इन्सान को था प्रेम पे अपने नाज़


फ़ैल गया है नफरत-स्वार्थ का अब राज़



बच्चे आतंक हैं खाते, नर खाते हैं लाज


रिश्तों की मंडी से सजा है सारा समाज



कच्ची कोखों में जहर भरा जा रहा आज


बेशर्मी का नाच है , तनिक नहीं है लाज



पेट वही है"कादर" सपने बड़े हो गए आज


कान वही हैं लेकिन बेसुरे हो गए सारे साज

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