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Saturday, 26 March 2011

गरीबी का सच





बारह बरस का कलुआ -


हंडिया ताक रहा है सवालों भरी


धुआं देती हैं गीली लकडियाँ


माँ कहती है- बरसातों में


और चूल्हा नहीं जलता घर में


पर ये समझ नहीं आता


क्यूँ नहीं जलता चूल्हा ?


जब बरसात नहीं होती तब






सवालों कि हंडिया उबल रही है


कोई न कोई इसमें डाल देगा


नक्सलवाद, माओवाद, या राष्ट्रवाद


हाथ में बन्दूक थामकर और तब


कलुआ छीनने लगेगा अपने लिए


जिस से पेट कि हंडिया भरी रहे






केदार नाथ "कादर"










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