बारह बरस का कलुआ -
हंडिया ताक रहा है सवालों भरी
धुआं देती हैं गीली लकडियाँ
माँ कहती है- बरसातों में
और चूल्हा नहीं जलता घर में
पर ये समझ नहीं आता
क्यूँ नहीं जलता चूल्हा ?
जब बरसात नहीं होती तब
सवालों कि हंडिया उबल रही है
कोई न कोई इसमें डाल देगा
नक्सलवाद, माओवाद, या राष्ट्रवाद
हाथ में बन्दूक थामकर और तब
कलुआ छीनने लगेगा अपने लिए
जिस से पेट कि हंडिया भरी रहे
केदार नाथ "कादर"
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