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Monday 13 May 2019

तुमने बहिन कहा है मुझे

तुमने बहिन कहा है मुझे
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गली में कोई आवाज लगा रहा था । दाल ले लो ...चावल ले लो ।

"ओ भैया ! कैसे दे रहे रहे हो ?" तीसरी मजिल से एक महिला ने आवाज लगाई थी । वह आदमी अपनी साइकिल पर तीन कट्टे चावल और हेंडिल पर दो थैलों में दाल लादे हुए था ।
"चावल चालीस का किलो है और मसूर सत्तर की किलो है ।"
"रुको मैं नीचे आती हूँ ।" कहकर महिला नीचे आने लगी । वह साइकिल लिए धूप में खड़ा रहा । कुछ देर बाद वह बाहर आई ।
"अरे! भैया , तुम लोग भी न हमें खूब चूना लगाते हो । चालीस रुपये किलो तो बहुत अच्छा चावल आता है और दाल भी महंगी है ...सही - सही भाव लगा लो। "
"बहिन जी ! इस से कम न दे सकूँगा । आप जानती नहीं हैं कि चावल और दाल को पैदा होने में सौ से एक सौ बीस दिन लगते हैं । एक किलो चावल पर बीस-तीस लीटर पानी लगता है । हर दिन डर लगता है हमें कि कुछ अनहोनी न हो जाय मौसम की । चार महीने पसीना बहाने के बाद भी कई बार फसल के दाम नहीं मिलते । आप लोग किसानों की बात खूब करते हैं पर कोई नहीं जानता कि हर साल दो लाख किसान मर जाते हैं । हमारे पास आप जैसे बड़े मकान नहीं , सुविधा के सामान नहीं । खुद ही निकल पड़े हैं इस लोहे के घोड़े पर लादकर ।"
"सब जानती हूँ भैया पर वहाँ स्टोर में तो सस्ता मिलता है ।" वह अपनी बात ऊपर करते हुए बोली ।
"बहिन जी , दो रुपए किलो का आलू चार सौ रुपये किलो में चिप्स में , बीस रुपये किलो का चावल सात-आठ सौ रुपये किलो और हमारी अस्सी रुपये किलो की मिर्च पीसकर डिब्बों ले तीन चार सौ रुपये किलो आपको सस्ती लगती । नहीं दे सकेंगे जी ।" वह आगे बढ्ने लगा ।
"लगता है तुम टी वी खूब देखते हो ।" महिला बोली ।
"हाँ, कभी-कभी देखते हैं अपना मज़ाक बनते हुए । खेती की जमीन पर कब्जे , पानी का नीचे जाता स्तर , खाद, बीज के बढ़ते भाव और किसानों की बेइज्जती तो आप भी जानती होंगी । यहाँ कोई बड़ा आदमी करोड़ों लेकर भाग जाय तो कुछ नहीं , हम कर्ज न चुका पाएँ तो बैंक दीवार पर नाम का नोटिस चस्पा कर देता है । सब के सामने बेइज्जत करता है , कुर्की लाता है । बहिन चाँदी तो बिचौलिये काट रहे हैं ।"
"लगता है राजनीति भी जानते हो तुम ।"
"हम तो शिकार हैं राजनीति के । जब इस देश की नदियां सूख जाएगी , जंगल खत्म हो जाएँगे , जब खेतों पर इमारतें होंगी तब इंसान लड़ेगा रोटी के हर टुकड़े के लिए मगर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी ...फिर ये फेक्टरिया भूख मारने की दवाई बनाएँगी या एक -दूसरे को मारने की गोलियां ।" वह बोला ।
"बात तो पढे-लिखो जैसी कर रहे हो भैया । कहाँ तक पढे हो ?"
"सरकारी कालेज से बी ए किया है , पर हमारे लिए नौकरी नहीं है । हम अपनी भाषा में जो पढे हैं । यहाँ तो सबको चटर -पटर अङ्ग्रेज़ी चाहिए और ससुर गाली देंगे अपनी भाषा में । अनपढ़ करेंगे राज तो होगी ही मेहनतकश पर गाज ।" वह अपना पसीना पोंछते हुए बोला ।
"वोट तो तुम भी देते हो न ।"
"वोट भी हम देते हैं , जान भी हम देते हैं , भीड़ भी हम होते हैं और मरने को सेना में भी हम जाते हैं । आम आदमी बस साल में एक दिन नारा लगाता है जय जवान जय किसान और हो गए महान ।" वह बोला । धूप बहुत तेज थी सो सीधे सवाल किया ," बहिन जी ! कितना लेना है ?"
"पाँच किलो चावल और दो किलो दाल ।" महिला दाल देखते हुए बोली ।
"ठीक है दस रुपया कम दे देना कुल पैसे में ।" और उसने साइकिल स्टेंड पर खड़ी कर दी । महिला उसका लाल तमतमाया हुआ चेहरा देखती रही । वह सामान तोलने में लग गया ।
"लो बहिन जी , आपका सामान तोल दिया ।
महिला ने सामान लिया और बोली , " ऊपर जाकर पैसे देती हूँ भैया । "
कुछ देर बाद एक टोकरी उसने लटका दी जिसमें उसके पूरे पैसे थे । एक पानी की बोतल थी और कुछ लपेटकर रखा हुआ था ।
उसने पैसे और पानी ले लिया ।
"बहिन आपने ज्यादा पैसे रख दिये हैं । दस रुपये काटे नहीं ।" वह चिल्लाया ।
"पहले खाना ले लो ...समझना मैंने रुपये ले लिए ....तुमने बहिन कहा है मुझे , खाना जरूर खाना ।" उसने वहीं बैठकर खाना शुरू कर दिया था । तीसरे मंजिल से कुछ टपका था मगर तपती धूप में दिखा नहीं था। हथेलियों पर राहत की दो गरम बूंद आत्मीयता के मोतियों के बिखर गए थे । टोकरी धीरे-धीरे कर ऊपर चली गई थी और उसके हाथ ऊपर उठ गए थे दुआ में एक अंजान बहिन के लिए ।
शब्द मसीहा

Friday 18 September 2015

कविता

कविता सोच का विषय है 

या ज्योमिती का

अभी तय करना बाकी है 

जीवन में शिव और शक्ति के

दो त्रिकोण हैं .

जिनके बीच एक माँ है 

प्रकृति शक्ति है और प्राण शिव हैं 

मगर शवों का नर्तन जारी है


मैं उस रस्ते को चुनता हूँ
जहां क़दमों के निशां नहीं हैं
अक्सर चोट खाता हूँ सीखता हूँ
लहू भी है और औषधि भी
मुझे विश्वास है एक दिन
नफरत की दुनियाँ में भी
प्यार का सूरज उगेगा ..क्योंकि
ज्योमिती में वृत भी होता है
लौटना ही होता है सच पर
क्योंकि हम सच से ही पैदा होते हैं
शरीर का वाहन लेकर घूमने को
और अंत में उतरना भी है
रास्ते साथ नहीं रखे जा सकते
और मंजिल पर पहुंचकर
ये वाहन भी छोडना ही है
बस यही है जीवन की कविता


शब्द मसीहा

गोमांस पर प्रतिबन्ध

गोमांस पर प्रतिबन्ध पर बहुत चिंतन मनन हुआ है फेसबुक पर . विरोध की भाषा तो बहुत देख ली अब कुछ सार्थक भी हो जाय .


१. क्या सरकार गोमांस निर्यात पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती ?


२, देश में बहुत सी जगह अभी भी बेकार पड़ी है . क्यों न वह जमींन युवा बेरोजगारों को सस्ते दाम पर और पट्टे पर दी जाय गोशाला बनाने के लिए . इस से बेरोजगारी पर लगाम लगेगी और लोगों को दूध उत्पाद मिलेंगे .


३. गाय को अनुपयोगी क्यों मान लिया गया है ? देशी गाय का नस्ल संवर्धन किया जाय .


४. गोशालाओं को माडल के रूप में प्रस्तुत किया जाय , दूध , गोबर गैस, बिजली उत्पादन, खाद उत्पादन, जैविक कृषि इन सबकी एक चेन बनाकर .


५ गो उत्पादों से बनने वाली औषधियों का निर्माण और चिकित्सा का पुनः विकास और आरोग्य शालाएं खोली जाय .


मेरा मत है कि अगर किसान को गाय बेचने पर मजबूर न किया जाय तो इस देश में अल्प काल में एक और श्वेत क्रांति आ सकती है . जब गाय उपयोगी लगने लगेगी तो इसका संवर्धन और सुरक्षा स्वतः निर्धारित हो जायेगी . मात्र पूजनीय कहने के बजाय इसको उपयोगी बनाने की जरुरत है . गाय पर दया की नहीं दिशा की जरुरत है .


आपके सुझाव आमंत्रित हैं .

जब नींद लगी तो मैं जागा

जब नींद लगी तो मैं जागा             

अपने को देखा अपने आप 

शायद वो कोई सपना था 

लेकिन बहुत ही अपना था 

न डर था झूठ सांच का ही 

न डाह की किसी आंच का ही 

बंद आँखों से जो जो देखा
कहीं सोया मेरे ही मन में था
तब उठकर बहुत मन रोया
मैंने जगकर बहुत कुछ खोया
जो दीखता है कहाँ होता है
यहाँ झूठ सांच सब धोखा है
सच कहता हूँ मैं यह तुमसे
अब मैं सो जाना चाहता हूँ
उन निर्बंध विचरती राहों पर
मैं सच में खो जाना चाहता हूँ
ये जीवन भी कोई जीवन है
उस जीवन सा हो जाना चाहता हूँ
शब्द मसीहा

उड़ान

उड़ान ====



बिखरे बाल और बदहवास बेटी को देखकर माँ के होश उड़ गये . सौ-सौ सवाल मन में बिजली से कौंध गये .क्या हुआ ? बेटी !
लड़की लंबी लंबी साँसे ले रही थी मानों किसी बहशी जानवरों के जंगल से अपनी जान बचाकर आई हो . माँ ने उसे सीने से लगाया . तब कहीं हिचकियाँ बंद हुई उसकी .
जो बेटी ने बताया उस को सुन माँ माथा पकड बैठने को मजबूर हो गई . किसी तरह खुद को सम्हाला और बेटी को नहलाया .
सुबह तक बेटी किसी पंख नोचे पंछी सी हो गई थी , सारी रात माँ उसके पास बैठी रही न बेटी को नींद आई और न माँ को .
दोनों थाने पहुंची और अपनी रपट लिखवाने की बात करने लगीं . पर जब पता चला कि पुलिस के ही लोगों ने दुष्कर्म किया है तो तेंवर ही बदल गये दरोगा के . वह तम्बाकू मसलते और अजीब सी निगाहों से देखते हुए बोला - किसी दिन तो ये होना ही था , कल ही हो गया तो क्या हुआ .
बेटी खुद को होठों में दबी तम्बाकू सी ..दांतों का बोझ अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी . उसने सोच लिया था अब एक नई उड़ान पर जाने के लिए . दुपट्टा कमर में बाँधा और पूरी ताकत से दरोगा के मुँह पर थूक दिया .
कल से तुम अपने सिपाहियों को यहाँ बंद रखना अब वे ही आयेंगे अपनी रपट लिखवाने .
यह कहते हुए माँ का कंधा पकड़ घर की ओर चल पड़ी अपनी नई उड़ान के मंसूबे मन में संजोये दरिंदों से बदला लेने के ..
शब्द मसीहा

स्कर्ट

स्कर्ट ===बस ठसाठस भरी हुई थी। मोना और अमनजीत दोनों ही बहुत असहज महसूस कर रहीं थी, जो भी निकलता पूरा बदन छू कर निकलता । मन ही मन वे बहुत गालियां भी दे रही थी। कार को आज ही खराब होना था। अपनी दुर्गति तो ऐसे ही हो गयी।तभी किसी ने अमनजीत के कमर पर हाथ फिराते हुए चिकोटी काट ली। अमनजीत "कौन है " कहकर पीछे मुड़ी , एक लड़का अपना मुंह फेरकर हंस रहा था। अब अमन की जगह मोना ने ले ली , लड़के ने दोबारा वही हरकत दोहराई। मोना झट से पलटी और उसका हाथ पकड़ कर उसके दो तीन रसीद कर दिए। बस में कोहराम खड़ा हो गया। लड़का गिड़गिड़ा उठा। किसी तरह वह अपने स्टाप तक पहुंची।
अमनजीत ने कहा - मोना ! मैंने तो पूरे कपडे पहने थे लेकिन उस लड़के ने मुझे क्यों छेड़ा ?
यार ! तुम भी न जाने किस दुनिया में रहती हो , ये साले पूरे कपडे पहनने पर बहिन जी तो कहने से रहे बल्कि उसकी शर्म का फायदा उठाते हैं। मुझे देखो मैं स्कर्ट और टाइट टॉप पहनती हूँ दूर से ही मॉडर्न दिखती हूँ, किसी की हिम्मत नहीं होती कि मुझे कोई छेड़े क्योंकि मनचलों को मालूम है , छेड़ा तो पड़ी सैंडिल सर पर ....... हा हा हा.
याने कि अपने को बचाने के लिए अब मुझे भी थोड़ा नंगा होना ही पडेगा। अजीब है इस शहर की सोच।
शब्द मसीहा

लिखो कोई नई इबारत

लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


निज भाषा के गौरव से क्यों तुम बोलो यारो कतराते हो उन्हीं फिरंगी चालों में क्यों फिर फिरकर फंस जाते हो


वह आजादी का शेष सवेरा
पीट रहा है कब से दर तेरा
काला झंडा यह अंग्रेजी का
कब हटेगा मुल्क के सीने से


लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से
चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


अब भी भाषा और प्रांत में
क्यों देश बँटा अपना यारो
एकसूत्र में बांधे यह हिंदी
फिर क्यों द्रोह है हिंदी से


अभी है शेष सुशोभित होना
भारत माता की जिव्हा को

हम काहे पराई भाषा रटते

बाज आते नहीं तुतलाने से


लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से
चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


निज भाषा में बात करो
ज्ञान निर्माण करो भाई
तुम क्यों मुख फिराते हो
निज देवभाषा सहोदरी से


आजादी का मूल मंत्र यह
निज भाषा में मनन करें
उद्गार भाव सकल अपने
हों सृजित हिंदी पुष्पों से


लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से
चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


शब्द मसीहा