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Sunday, 14 November 2010

बालक

आज बालदिवस है, बच्चों को गली में खेलते देखा , और माँ बाप को बच्चों को डांटते हुए भी देखा. बालक मन के कुछ प्रश्न जरुर होते होंगे , आज शायद वहां तक मैं न पहुँच पाऊँ , पर लगता है कि कुछ ऐसे ही सोचते होगा बालक

मैं नन्हा बालक माँ तेरा
तू ही बता मैं खेलूं कहाँ ?
तू ही बता मैं गाऊँ कहाँ ?
तुम मार रहे मेरा बचपन
तुमसे बचने मैं जाऊं कहाँ?
खेलूँ तो कहते मत खेलो
गाऊँ तो मत गाओ यहाँ
कोई कहता चुप हो जाओ
कोई कहता बाहर जाओ
कोई कहता है सिर्फ पढो
सारे आदेश हैं मेरे लिए
तुम ही कहो मैं हूँ कहाँ ?
निज नैसर्गिकता को खोना
होना है समझदार यहाँ
मैं बालक ही अच्छा हूँ
तुम जैसे बुद्धि वालों से
धीरे धीरे प्रेम मारकर
तुम कैसे गढ़ते इन्सान यहाँ ?
मुक्त जी सकूँगा क्या जीवन ?
तू ही बता न मेरी माँ

केदारनाथ" कादर"

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