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Sunday, 23 May 2010

सपने

आँखों ने मन ने मिल के
कैसे ये सपने बुने हैं
आंसुओं से नहाये हैं मेरे
इसलिए तो इतने नए हैं
.... कैसे ये सपने बुने हैं

नींद आती नहीं है हमको
जागते जागते सो रहे हैं
डर लगता है सपनो से हमको
जखम सपनो ने हमको दिए हैं
.... कैसे ये सपने बुने हैं
डरते हैं कहीं मिल न जाएँ
बड़ी मुश्किल से भुलाया है उनको
नाम उनका पुकारा किसी ने
जबाब हमने कितने दिए हैं
..... कैसे ये सपने बुने हैं
आइना भी बड़ा खुदगरज है
कैसी करता है हमसे ठिठोली
सामने जब भी होते हैं उसके
अक्स उसके ही इसने दिए हैं
.... कैसे ये सपने बुने हैं
मन मेरा मेरे वस् में नहीं है
ये मुझसे जुदा हो गया है
"कादर" किसी के सपनो में
नींद अपनी कोई खो गया है


केदारनाथ "कादर"

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