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Monday, 10 May 2010

और नहीं अब और नहीं

और नहीं अब और नहीं
बूढी आँखों में सपनों की मौतें
गीत रुंधी आवाजों में
और नहीं अब और नहीं

बिंधे पंख से और उड़ानें
मजदूरों के तैश तराने
लहू की प्यासी तेज कटारें
और नहीं अब और नहीं

अंग भंग न करो देश के
न करो प्रेम का बंटवारा
भाई -भाई में रार नई
और नहीं अब और नहीं

जंगखोर कर रहे घोषणा
शांति का तुम कर दो नाद
लहू की धार धरती पर
और नहीं अब और नहीं

हर मन इक उपवन हो जाये
न हो नई कहीं बिभिषिका
दुनिया के नक़्शे पे दरारें
और नहीं अब और नहीं

मुक्त प्राण हो मुक्त हो सांसे
न मन पर कोई बंधन हो
अवांछित शासन की शर्तें
और नहीं अब और नहीं

स्वर सम्बेत सभी जन गाएं
विश्व में गड़बड़ और नहीं
प्रेम राज हो "कादर" कटुता
और नहीं अब और नहीं

केदारनाथ "कादर"

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