जब भी आती हैं ख्यालों में, दो कजरारी तुम्हारी आँखें
कितने मधुर फूल खिला जाती हैं, चंचल तुम्हारी आँखें
यूँ लगता है खामोश हैं, आईने सी ये तुम्हारी आँखें
कैसी कैसी बातें बनाती हैं, ये वाचाल तुम्हारी आँखें
ढलते ही शाम चरागों सी, जलती हैं ये तुम्हारी आँखें
मेरी हर राह को रोशन, करती हैं ये दो तुम्हारी आँखें
सनम मुझसे दूर हो तुम, मेरे पास है तुम्हारा चेहरा
ढूँढती रहती हैं तुमको ही, हर पल ये हमारी आँखें
हम तो सोते हुए रखते हैं, सदा खुली ये अपनी आँखें
जाने किस रोज लौट आयें, मुझतक ये तुम्हारी आँखें
हमें हर गीत गाते हुए बस, तुम ही याद आते हो प्रिय
अक्सर उठ जाती हैं इस सारे शहर की मुझ पर आँखें
तुमको इन आँखों में मैंने बंद, सपने सा अपने रखा है
"कादर" तुम्हारे साथ ही होंगी, बंद सनम ये हमारी आँखें
केदारनाथ "कादर"