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Monday, 6 October 2014

 जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा 

पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
अपनी खुशियाँ पाने खातिर
कितने अश्रु दिए आँखों में 
भूल कर रहे हैं खुश होकर
हमको इक दिन रोना होगा
जाने किसको छलते हैं हम
जाने कौन हमें छलता है
पल-पल यह बढ़ता है खाता
जन्म -जन्म तक ढोना होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
हम आँखें बंद किये कर्मों से
ज्यों कपोत हों हम निरीह से
काल कभी भी न छोडेगा
निर्णय तो इक दिन यह होगा
यह पूजन यह अर्चन तेरा
केवल दुनियाँ की बातें हैं
तीसरे तिल पे हवन नहीं तो
जीवन से आघात यह होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
भूखे रह कर चिंतन न हो
तब उपवास है कैसा बोलो
कोई व्रत नहीं पाला मन से
कैसे मन निस्तारण होगा
यह कर्मों की गीता तेरी है
स्वयं ही पाठक बनना होगा
है सांसें स्वाध्याय तू कर ले
वरना हाथ ही मलना होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
शब्द मसीहा


शब्द मसीहा

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