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Monday, 6 October 2014

हतभाग

हुआ हतभाग...... मित्र को
शब्दों से जब देना पड़ा जवाब
शब्द को जाना ..सुलगा हुआ
हुआ निज मन में बहु संताप

खड़े हैं प्रश्न उठाये शस्त्र
शब्द ही ठहरे आखिर अस्त्र
मूल में रहा है वार कुठार
नहीं क्यों संयम का प्रताप

सुमन में अग्नि दीप जले
न जाने कितने घाव खिले
न जाने कितना नीर बहा
रुका न मन का मगर विलाप

मौन में क्यों कोलाहल है
चेतना क्यों यह चंचल है
प्रश्न आये नहीं लेकिन
भीरुमन करता कई प्रलाप

काँप जाता है क्यों विश्वास
ह्रदय क्यों है होता नि:स्वांस
शब्द को जाना ..सुलगा हुआ
गीत नहीं लेता है आलाप

शब्द मसीहा

 जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा 

पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
अपनी खुशियाँ पाने खातिर
कितने अश्रु दिए आँखों में 
भूल कर रहे हैं खुश होकर
हमको इक दिन रोना होगा
जाने किसको छलते हैं हम
जाने कौन हमें छलता है
पल-पल यह बढ़ता है खाता
जन्म -जन्म तक ढोना होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
हम आँखें बंद किये कर्मों से
ज्यों कपोत हों हम निरीह से
काल कभी भी न छोडेगा
निर्णय तो इक दिन यह होगा
यह पूजन यह अर्चन तेरा
केवल दुनियाँ की बातें हैं
तीसरे तिल पे हवन नहीं तो
जीवन से आघात यह होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
भूखे रह कर चिंतन न हो
तब उपवास है कैसा बोलो
कोई व्रत नहीं पाला मन से
कैसे मन निस्तारण होगा
यह कर्मों की गीता तेरी है
स्वयं ही पाठक बनना होगा
है सांसें स्वाध्याय तू कर ले
वरना हाथ ही मलना होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
शब्द मसीहा


शब्द मसीहा