Total Pageviews

Friday 18 September 2015

काजल

काजल
=====
कितनी बार कहा है तुम्हें ! मुझे तुम्हारा ये ज्यादा बनाव श्रृंगार करके नौकरी पर जाना पसंद नहीं है। मालूम है , जो हवा वह रही है उसमें देह के सिवा कुछ नहीं सूझता हवस के अंधों को। काजल से आँखें सजाती अपनी पत्नी सुमि को उसने कहा।
जानती हूँ जी , मुझे खुद पर और भगवान पर भरोसा है। अपनी बाहों में भरते हुए सुमि ने कहा।
तुम हर बार मुझे ऐसे ही चुप करा देती हो , पर ये ठीक नहीं है। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और तुम्हारे लिए चिंता करता हूँ।
सुमि रोज की तरह घर से आफिस की तरफ बढ़ चली। दिन में उसने फोन किया कि आज मीटिंग की तैयारी करनी है इसलिए शाम को देर से जाएगी।
रात के नौ बजे तक सुमि घर नहीं पहुंची तो उसने फोन किया आफिस में। पता चला कि सात बजे ही घर चली गयी है। सर्दियों की रात और शहर का माहौल। अनेक प्रश्न अनहोनी के मन में बिजली से कौंध गए। तभी फोन की घंटी बजी -हेल्लो ! हम सिटी हस्पताल से बोल रहे हैं , आप जल्दी पहुँचिये।
वह सिटी अस्पताल की तरफ चल पड़ा। वहां जाकर देखा तो उसकी सिमी बुरी तरह पट्टियों से लिपटी हुई उसकी ओर देख रही थी।
क्या हुआ ? वही , जो तुम कहते थे और मैंने भी वही किया जो मैं कहती थी। तुम्हारे सिवा कोई मेरे तन को छू भी नहीं सकता। वह सिसक सिसक कर रोने लगी।
इन्स्पेक्टर ने उसे सारी बात बताई तो वह अपनी सुमि पर गर्व करने लगा मन ही मन। वह सिमी के पास पहुंचा और बोला - मुझे न मालूम था तुम इतनी बहादुर हो तीन -तीन से भीड़ जाओगी।
सिमी ने अपनी आँख का काजल उसके गालों पर लगाते हुए कहा -तुम मेरा सम्बल हो बस तुम्हें किसी की नजर न लगे और वह उस से लिपट गयी. दोनों की आँख से बहती जलधार मानों हादसे को धो रही हो।
शब्द मसीहा

No comments:

Post a Comment