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Friday 18 September 2015

कविता

कविता सोच का विषय है 

या ज्योमिती का

अभी तय करना बाकी है 

जीवन में शिव और शक्ति के

दो त्रिकोण हैं .

जिनके बीच एक माँ है 

प्रकृति शक्ति है और प्राण शिव हैं 

मगर शवों का नर्तन जारी है


मैं उस रस्ते को चुनता हूँ
जहां क़दमों के निशां नहीं हैं
अक्सर चोट खाता हूँ सीखता हूँ
लहू भी है और औषधि भी
मुझे विश्वास है एक दिन
नफरत की दुनियाँ में भी
प्यार का सूरज उगेगा ..क्योंकि
ज्योमिती में वृत भी होता है
लौटना ही होता है सच पर
क्योंकि हम सच से ही पैदा होते हैं
शरीर का वाहन लेकर घूमने को
और अंत में उतरना भी है
रास्ते साथ नहीं रखे जा सकते
और मंजिल पर पहुंचकर
ये वाहन भी छोडना ही है
बस यही है जीवन की कविता


शब्द मसीहा

गोमांस पर प्रतिबन्ध

गोमांस पर प्रतिबन्ध पर बहुत चिंतन मनन हुआ है फेसबुक पर . विरोध की भाषा तो बहुत देख ली अब कुछ सार्थक भी हो जाय .


१. क्या सरकार गोमांस निर्यात पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती ?


२, देश में बहुत सी जगह अभी भी बेकार पड़ी है . क्यों न वह जमींन युवा बेरोजगारों को सस्ते दाम पर और पट्टे पर दी जाय गोशाला बनाने के लिए . इस से बेरोजगारी पर लगाम लगेगी और लोगों को दूध उत्पाद मिलेंगे .


३. गाय को अनुपयोगी क्यों मान लिया गया है ? देशी गाय का नस्ल संवर्धन किया जाय .


४. गोशालाओं को माडल के रूप में प्रस्तुत किया जाय , दूध , गोबर गैस, बिजली उत्पादन, खाद उत्पादन, जैविक कृषि इन सबकी एक चेन बनाकर .


५ गो उत्पादों से बनने वाली औषधियों का निर्माण और चिकित्सा का पुनः विकास और आरोग्य शालाएं खोली जाय .


मेरा मत है कि अगर किसान को गाय बेचने पर मजबूर न किया जाय तो इस देश में अल्प काल में एक और श्वेत क्रांति आ सकती है . जब गाय उपयोगी लगने लगेगी तो इसका संवर्धन और सुरक्षा स्वतः निर्धारित हो जायेगी . मात्र पूजनीय कहने के बजाय इसको उपयोगी बनाने की जरुरत है . गाय पर दया की नहीं दिशा की जरुरत है .


आपके सुझाव आमंत्रित हैं .

जब नींद लगी तो मैं जागा

जब नींद लगी तो मैं जागा             

अपने को देखा अपने आप 

शायद वो कोई सपना था 

लेकिन बहुत ही अपना था 

न डर था झूठ सांच का ही 

न डाह की किसी आंच का ही 

बंद आँखों से जो जो देखा
कहीं सोया मेरे ही मन में था
तब उठकर बहुत मन रोया
मैंने जगकर बहुत कुछ खोया
जो दीखता है कहाँ होता है
यहाँ झूठ सांच सब धोखा है
सच कहता हूँ मैं यह तुमसे
अब मैं सो जाना चाहता हूँ
उन निर्बंध विचरती राहों पर
मैं सच में खो जाना चाहता हूँ
ये जीवन भी कोई जीवन है
उस जीवन सा हो जाना चाहता हूँ
शब्द मसीहा

उड़ान

उड़ान ====



बिखरे बाल और बदहवास बेटी को देखकर माँ के होश उड़ गये . सौ-सौ सवाल मन में बिजली से कौंध गये .क्या हुआ ? बेटी !
लड़की लंबी लंबी साँसे ले रही थी मानों किसी बहशी जानवरों के जंगल से अपनी जान बचाकर आई हो . माँ ने उसे सीने से लगाया . तब कहीं हिचकियाँ बंद हुई उसकी .
जो बेटी ने बताया उस को सुन माँ माथा पकड बैठने को मजबूर हो गई . किसी तरह खुद को सम्हाला और बेटी को नहलाया .
सुबह तक बेटी किसी पंख नोचे पंछी सी हो गई थी , सारी रात माँ उसके पास बैठी रही न बेटी को नींद आई और न माँ को .
दोनों थाने पहुंची और अपनी रपट लिखवाने की बात करने लगीं . पर जब पता चला कि पुलिस के ही लोगों ने दुष्कर्म किया है तो तेंवर ही बदल गये दरोगा के . वह तम्बाकू मसलते और अजीब सी निगाहों से देखते हुए बोला - किसी दिन तो ये होना ही था , कल ही हो गया तो क्या हुआ .
बेटी खुद को होठों में दबी तम्बाकू सी ..दांतों का बोझ अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी . उसने सोच लिया था अब एक नई उड़ान पर जाने के लिए . दुपट्टा कमर में बाँधा और पूरी ताकत से दरोगा के मुँह पर थूक दिया .
कल से तुम अपने सिपाहियों को यहाँ बंद रखना अब वे ही आयेंगे अपनी रपट लिखवाने .
यह कहते हुए माँ का कंधा पकड़ घर की ओर चल पड़ी अपनी नई उड़ान के मंसूबे मन में संजोये दरिंदों से बदला लेने के ..
शब्द मसीहा

स्कर्ट

स्कर्ट ===बस ठसाठस भरी हुई थी। मोना और अमनजीत दोनों ही बहुत असहज महसूस कर रहीं थी, जो भी निकलता पूरा बदन छू कर निकलता । मन ही मन वे बहुत गालियां भी दे रही थी। कार को आज ही खराब होना था। अपनी दुर्गति तो ऐसे ही हो गयी।तभी किसी ने अमनजीत के कमर पर हाथ फिराते हुए चिकोटी काट ली। अमनजीत "कौन है " कहकर पीछे मुड़ी , एक लड़का अपना मुंह फेरकर हंस रहा था। अब अमन की जगह मोना ने ले ली , लड़के ने दोबारा वही हरकत दोहराई। मोना झट से पलटी और उसका हाथ पकड़ कर उसके दो तीन रसीद कर दिए। बस में कोहराम खड़ा हो गया। लड़का गिड़गिड़ा उठा। किसी तरह वह अपने स्टाप तक पहुंची।
अमनजीत ने कहा - मोना ! मैंने तो पूरे कपडे पहने थे लेकिन उस लड़के ने मुझे क्यों छेड़ा ?
यार ! तुम भी न जाने किस दुनिया में रहती हो , ये साले पूरे कपडे पहनने पर बहिन जी तो कहने से रहे बल्कि उसकी शर्म का फायदा उठाते हैं। मुझे देखो मैं स्कर्ट और टाइट टॉप पहनती हूँ दूर से ही मॉडर्न दिखती हूँ, किसी की हिम्मत नहीं होती कि मुझे कोई छेड़े क्योंकि मनचलों को मालूम है , छेड़ा तो पड़ी सैंडिल सर पर ....... हा हा हा.
याने कि अपने को बचाने के लिए अब मुझे भी थोड़ा नंगा होना ही पडेगा। अजीब है इस शहर की सोच।
शब्द मसीहा

लिखो कोई नई इबारत

लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


निज भाषा के गौरव से क्यों तुम बोलो यारो कतराते हो उन्हीं फिरंगी चालों में क्यों फिर फिरकर फंस जाते हो


वह आजादी का शेष सवेरा
पीट रहा है कब से दर तेरा
काला झंडा यह अंग्रेजी का
कब हटेगा मुल्क के सीने से


लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से
चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


अब भी भाषा और प्रांत में
क्यों देश बँटा अपना यारो
एकसूत्र में बांधे यह हिंदी
फिर क्यों द्रोह है हिंदी से


अभी है शेष सुशोभित होना
भारत माता की जिव्हा को

हम काहे पराई भाषा रटते

बाज आते नहीं तुतलाने से


लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से
चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


निज भाषा में बात करो
ज्ञान निर्माण करो भाई
तुम क्यों मुख फिराते हो
निज देवभाषा सहोदरी से


आजादी का मूल मंत्र यह
निज भाषा में मनन करें
उद्गार भाव सकल अपने
हों सृजित हिंदी पुष्पों से


लिखो कोई नई इबारत अपने खून पसीने से
चलो उखाड़ें कील अंग्रेजी भारत माँ के सीने से


शब्द मसीहा

 

काजल

काजल
=====
कितनी बार कहा है तुम्हें ! मुझे तुम्हारा ये ज्यादा बनाव श्रृंगार करके नौकरी पर जाना पसंद नहीं है। मालूम है , जो हवा वह रही है उसमें देह के सिवा कुछ नहीं सूझता हवस के अंधों को। काजल से आँखें सजाती अपनी पत्नी सुमि को उसने कहा।
जानती हूँ जी , मुझे खुद पर और भगवान पर भरोसा है। अपनी बाहों में भरते हुए सुमि ने कहा।
तुम हर बार मुझे ऐसे ही चुप करा देती हो , पर ये ठीक नहीं है। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और तुम्हारे लिए चिंता करता हूँ।
सुमि रोज की तरह घर से आफिस की तरफ बढ़ चली। दिन में उसने फोन किया कि आज मीटिंग की तैयारी करनी है इसलिए शाम को देर से जाएगी।
रात के नौ बजे तक सुमि घर नहीं पहुंची तो उसने फोन किया आफिस में। पता चला कि सात बजे ही घर चली गयी है। सर्दियों की रात और शहर का माहौल। अनेक प्रश्न अनहोनी के मन में बिजली से कौंध गए। तभी फोन की घंटी बजी -हेल्लो ! हम सिटी हस्पताल से बोल रहे हैं , आप जल्दी पहुँचिये।
वह सिटी अस्पताल की तरफ चल पड़ा। वहां जाकर देखा तो उसकी सिमी बुरी तरह पट्टियों से लिपटी हुई उसकी ओर देख रही थी।
क्या हुआ ? वही , जो तुम कहते थे और मैंने भी वही किया जो मैं कहती थी। तुम्हारे सिवा कोई मेरे तन को छू भी नहीं सकता। वह सिसक सिसक कर रोने लगी।
इन्स्पेक्टर ने उसे सारी बात बताई तो वह अपनी सुमि पर गर्व करने लगा मन ही मन। वह सिमी के पास पहुंचा और बोला - मुझे न मालूम था तुम इतनी बहादुर हो तीन -तीन से भीड़ जाओगी।
सिमी ने अपनी आँख का काजल उसके गालों पर लगाते हुए कहा -तुम मेरा सम्बल हो बस तुम्हें किसी की नजर न लगे और वह उस से लिपट गयी. दोनों की आँख से बहती जलधार मानों हादसे को धो रही हो।
शब्द मसीहा

ठप्पे

ठप्पे
===
दो दोस्त दारु के नशे में कोठे की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ऊपर पहुंचे। इत्र की खुशबू और गानों की आवाज आ रही थी। बाई ने लड़कियाँ पेश की। दोनों ने लड़कियों पर निगाह डाली और अपने-अपने लिए लडकियां चुन ली।
बाई की तरफ देखते हुए पूछा - हम नशे में लेकिन हमारे साथ धोखा मत करना , हम अपने धर्म की लड़कियों से ऐसा गलत काम नहीं कर सकते।
ये कोठा है साहब ! यहाँ का धर्म सिर्फ जिस्म होता है और ऊपर वाले जिस्म पर धर्म के ठप्पे नहीं लगाए । धर्म खरीदना है तो कहीं और जाओ।
शब्द मसीहा

धन्यवाद ममता दीदी

धन्यवाद ममता दीदी
कितने ही सालों से एक सच्चे भारतीय और भारत माता के सपूत सुभाष चन्द्र बोस पर सरकारी डर के जाले को आपने साफ़ किया . न सिर्फ आपने अपना चुनावी वादा पूरा किया बल्कि इतिहास को पुनः लिखने की शुरुआत का रास्ता साफ़ किया है . चौसठ फाइलों को सार्वजनिक कर साहस का काम किया है . यह देश की जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला कार्य है .
अपने नायक के साथ हुए अन्याय और गुमनामी में मरने के लिए मजबूर करने वाले लोगों और परिस्थितियों को जानना इस देश के नागरिक का हक है . सत्ता किसी भी दल की रही हो किन्तु देश की जनता से तो सच को छिपाया ही गया है . राजनीति का वीभत्स रूप भी नंगा हो गया है . इस देश के नेता कैसे जनता और उसके जन नायकों के साथ खेल खेलते रहे हैं सब उजागर हो रहा है .

राष्ट्रवादी कहलाने वाली केंद्र सरकार की अब परीक्षा की घड़ी है बाकी एक सौ पचास फाइलों को सार्वजनिक करने की . संबंधों के खराब होने की दुहाई देकर सात दशक बिता दिये गये हैं आखिर जनता की भावनाओं को कब सुकून मिलेगा ? सुभाष बोस के नारे और जुमले सुनाकर खूब वोट बटोर लिए अब समय है हिम्मत दिखाने और यह साबित करने का कि हम वाकई विश्व शक्ति बनने के लिए कोई कदम बढ़ा रहे हैं . एक एक कठिन काम करने से ही कठिनायों पर विजय की आदत पड़ती है .
अब देश कोई जुमला नहीं सुनना चाहता अपने नेता के बारे में जानना चाहता है ताकि जनता के मुजरिमों की समाधियां तोड़ी जा सके जहां लोग जाकर उनकी मक्कारी को नमन करते हैं .अगर वाकई लोकतंत्र है और जनता की जरा सी भी क़द्र है तो यह काम जल्द से जल्द होना चाहिए .ताकि जनता अन्य विकल्प न अपनाए अपने सब्र का बाँध तोड़कर .
आज ममता दीदी ने जो काम किया है उसके लिए हर सुभाष बोस को चाहने वाला उनको धन्यवाद कहता है . जय हिंद .

संकल्प

संकल्प
=====
हर रोज की चिकचिक और झगडे से बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा था . बच्चे बाप को देखकर सहम जाते थे . हर रात माँ बाबा का झगड़ा पक्का था .
रवि हर बार यही दलील देता कि उसका काम ऐसा है कि उसे देर तक काम करना पड़ता है और थकान उतारने के लिए थोड़ी पीकर आना कौन सी बुरी बात है .
उसने बच्चों को खाना खिलाकर सुला दिया था और मेज पर शराब की बोतल और गिलास सजा दिये थे . आज उसने सोच लिया था कि वह अपनी थकान रवि के सामने ही उतारेगी .
रवि के आते ही उसने दरवाजा खोला और बड़े ही प्यार से उसका बैग हाथ से लेकर उसका कोट उतारा . रवि आज भौचक था इस व्यवहार पर .
मेज पर दो गिलास शराब से भरे और हाथ पकड़कर मेज तक रवि को ले गई . अपने हाथ से गिलास रवि के हाथों में दिया और चियर्स कहकर अपना गिलास उठा लिया . रवि एकदम हैरान था
उसने बीबी के हाथ से गिलास झटक दिया और तड़ाक से एक थप्पड़ गाल पर रसीद कर दिया .
क्यों ? मुझे थकान नहीं उतारने दोगे मैं सुबह पांच बजे उठती हूँ और अब रात के ग्यारह बज रहे हैं . इसके बाद तुम्हें अपनी मनमानी भी करनी है मेरे साथ . अब मैं बहुत थक गई हूँ रवि ,मुझे भी पीने दो आज से मैं भीी तुम्हारी तरह जीना चाहती हूँ .
रवि के पास कोई जबाब नहीं था मगर एक संकल्प था जो उसकी आँखों से बहते आँसू लिख रहे थे बीबी को बांहों में भरे हुए .
शब्द मसीहा

डेंगी पार्टी जिंदाबाद

  डेंगी पार्टी जिंदाबाद =============


दिल्ली के एक बड़े आलिशान घर में मच्छरों की महासभा का आयोजन किया गया . पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था . मंच पर मच्छरों के मुख्यमंत्री ने आते ही जोरदार अभिवादन किया " डेंगी पार्टी जिंदाबाद "


पूरा हाल " डेंगी पार्टी जिंदाबाद " के नारों से दहल उठा . भिनभिनाने की गति में अचानक ब्राउनियन मोशन की तरह बहुत तेजी आ गई . लोग अपने मुख्यमंत्री को देखकर बल्लियों उछल रहे थे . यह वही खास नेता थे जिन्होंने दुनियाँ बदलने की कसम खाई थी अपने आंदोलन के द्वारा . वाकई इन्होने अपनी दुनियाँ बदल डाली और सड़क से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय किया .


भाइयो और बहिनों !


हमने आप से वादा किया था चुनाव से पहले हम आपको पानी देंगे और हमने दिया . घर में चाहे न हो पर नालियों में , नालों में और गलियों -गड्ढों में अपने भरपूर प्रयास से पानी की उपलब्धता बढ़ाई है ,ताकि हमारी अगली नस्लें जल्द से जल्द अपनी ताकत बढ़ा सकें और वो भी कोई "बोडीबिल्डो" की एक्स्ट्रा खुराक लिए बिना .हम ने आदमी के हर स्वास्थ्य विभाग में सुस्ती लाने का पूरा इंतजाम किया है ताकि हमारे जीवन को चलाने के लिए भरपूर खून मिलता रहे चूसने के लिए .


हमें आदमी के नकली दवा बनाने वाले और आदमी के सफाई विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों को धन्यवाद देना चाहिए जिनकी हमारे प्रति दया से आज हम हर गली, हर घर में फल फूल रहे हैं . ये लोग हम मच्छरों के भगवान हैं वे साक्षात् दया और जीवन के अवतार हैं. हमनें फैसला किया है कि हम "MCD रोड" नामकरण कर उनका आभार व्यक्त करेंगे .


हम उन लोगों का भी धन्यवाद करना नहीं भूल सकते जो लोगों के घर कूलरों और टंकियों की जांच को नहीं गये जहां पर हमारी नई नई टाउनशिप जोरशोर से विकास कर रही हैं . हम विकास की राह पर हैं और हम इस विकास में इनके सहयोग को नमन करते हैं .


हम गन्दगी माता के भी हृदयतल से आभारी हैं जिसने यहाँ वहाँ फैलकर हमारे सम्राज्य विस्तार में हमारी सहायता की है .हम उन घर के मालिकों के आभारी हैं जो घरों में सफाई नौकरों के सहारे करवाते हैं और खुद नोट गिनने और शराब पीकर टी वी देखने में मस्त रहते हैं . हम हर उस पर्दे, सोफे, पलंग और कोने के शुक्रगुजार जो हमें अपनी शरण में छिपाए रखता है .


हम उन स्कूलों के विद्यार्थियों को भी नहीं भूल सकते जो सरकारी प्रचार के झांसे में नहीं आये और खाली पड़े बर्तनों में पानी को कभी साफ़ नहीं किया और घर में टायरों में खूब पानी को भरा रहने दिया .कभी अपने माँ-बाप का कहना मानकर सफाई नहीं की .
हम उन राजनैतिक पार्टियों के द्वेष को भी नमन करते हैं जिसके कारण लोगों की सुधबुध भूलकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करती रहीं और सफाई जैसे मसले पर कभी प्रशासन का ध्यान नहीं जाने दिया .
भाइयो !
हमें चील कौओं और चूहों के संघ से प्रस्ताव मिला है कि अगर हमारा आक्रमण हम बढ़ा दें तो उनको घरों में सडती लाशें मिल सकती हैं . हम केबिनेट में में इस प्रस्ताव पर अध्यादेश लायेंगे . हर आम और खास मच्छर का धर्म है वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को काटे और अपनी जनसँख्या को बढाये. साथ ही मैं घोषणा करता हूँ हर सौ मच्छर पैदा करने वाली माता मच्छर को शासन की ओर से सम्मानित किया जायेगा , हर मच्छर को आज से दस बीबी रखने की मैं कानूनी मान्यता की घोषणा करता हूँ .


पूरा हाल मच्छरों की तालियों से गूँज उठा . हर मच्छर सर पर " डेंगी पार्टी जिंदाबाद " लिखी टोपी खरीदने के लिए दौड पड़ा . अचानक मादा मच्छरों में जोश बढ़ गया और तरह तरह के मच्छर लुभाऊ तरीकों पर कानाफूसी होने लगी . हर मच्छर माता अपने सिर पर "गांधारी ताज" की कल्पना लिए मदहोश हो गई .


शब्द मसीहा

Wednesday 9 September 2015

सवालों के उठाने पर , बबाल अच्छे नहीं लगते
मुहब्बत झूठ से जिनको, सच अच्छे नहीं लगते

शब्द मसीहा
ख़्वाबों के परिंदों के
पर काट दिए लेकिन
अब खुद ही तरसते हैं
सन्देश नहीं मिलते ...

तितलियाँ पड़ी हैं पर
उन बेजान किताबों में
पहले की तरह लेकिन
अब चेहरे नहीं खिलते

रातों के ख्वाब अब तक
हैं अटके सूनी निगाहों में
जलते हैं दीये लेकिन
रौशन से नहीं लगते

हम कनक कटोरी ले
कितनें वन- वन घूमें
मन सुर अपने लेकिन
खुद से भी नहीं मिलते

आँखों से ओझल है
खुशियों के सब सपने
क़दमों के निशां गायब
खोजे से नहीं मिलते

शब्द मसीहा