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Sunday 30 November 2014

जीवन


जीवन जीने की मंशा में कितने मरते हैं लोग यहाँ 
मरने की कला न सीख सके अफ़सोस है हमको "मसीहा "

शब्द मसीहा 

Monday 6 October 2014

हतभाग

हुआ हतभाग...... मित्र को
शब्दों से जब देना पड़ा जवाब
शब्द को जाना ..सुलगा हुआ
हुआ निज मन में बहु संताप

खड़े हैं प्रश्न उठाये शस्त्र
शब्द ही ठहरे आखिर अस्त्र
मूल में रहा है वार कुठार
नहीं क्यों संयम का प्रताप

सुमन में अग्नि दीप जले
न जाने कितने घाव खिले
न जाने कितना नीर बहा
रुका न मन का मगर विलाप

मौन में क्यों कोलाहल है
चेतना क्यों यह चंचल है
प्रश्न आये नहीं लेकिन
भीरुमन करता कई प्रलाप

काँप जाता है क्यों विश्वास
ह्रदय क्यों है होता नि:स्वांस
शब्द को जाना ..सुलगा हुआ
गीत नहीं लेता है आलाप

शब्द मसीहा

 जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा 

पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
अपनी खुशियाँ पाने खातिर
कितने अश्रु दिए आँखों में 
भूल कर रहे हैं खुश होकर
हमको इक दिन रोना होगा
जाने किसको छलते हैं हम
जाने कौन हमें छलता है
पल-पल यह बढ़ता है खाता
जन्म -जन्म तक ढोना होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
हम आँखें बंद किये कर्मों से
ज्यों कपोत हों हम निरीह से
काल कभी भी न छोडेगा
निर्णय तो इक दिन यह होगा
यह पूजन यह अर्चन तेरा
केवल दुनियाँ की बातें हैं
तीसरे तिल पे हवन नहीं तो
जीवन से आघात यह होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
भूखे रह कर चिंतन न हो
तब उपवास है कैसा बोलो
कोई व्रत नहीं पाला मन से
कैसे मन निस्तारण होगा
यह कर्मों की गीता तेरी है
स्वयं ही पाठक बनना होगा
है सांसें स्वाध्याय तू कर ले
वरना हाथ ही मलना होगा
जब जीवन का लेखा होगा , कौन-सा पलड़ा भारी होगा
पाप रहे या पुण्य हमारे, हमको फिर-फिर के ढोना होगा
शब्द मसीहा


शब्द मसीहा

Sunday 9 March 2014

चाक़ू छुरियाँ

अब चाक़ू छुरियाँ और तलवारों की नहीं जरुरत 
"मसीहा" बांटने और काटने को रहनुमा बहुत हैं 

शब्द मसीहा 

खुदा से फाग

कहते हैं नहीं है खुदा अपना भगवान् से जुदा 
"मसीहा" दिल ये कह रहा है आ खुदा फाग खेल लें 

Kahte hain nahin hai khudaa apnaa bhagwaan se judaa 
"Masihaa " di ye hah rahaa aa khudaa faag khel lein 

Shabd Masihaa

माचिस


झीने से कपड़ों में संवेदना 
डर जैसी ही मालूम होती है 
हर आदमी इसे सहेजता है 
पर चोरी से आँखें हमारी 
या फिर लड़खडाती जुबान 
उठा ही देती है ...पर्दा 
सच से होते बालात्कार का 
नीचा  हो जाता है सिर 
टपक पड़ता है ...पैरों में खुद के 
और हम सम्हालने के लिए 
लगाते हैं झूठ का सीमेंट 

मैंने  सुना है सफ़ेद सीमेंट 
बहुत मजबूत होता है 
ओह ! इसीलिए बड़े लोगों के घर 
सफ़ेद पत्थर और सीमेंट से बनते हैं 
सफ़ेद गाड़ियों में चलते हैं 
सफ़ेद कपडे पहनते हैं 
सफेदपोश लोग कहाते हैं 

सच एक बम्ब होता है 
बस जरुरत है ...शब्दों के पलीते की
ताकि सच फ़ैल सके विस्फोट संग 
दूर दूर तक ..हर बस्ती में 
झूठ के जंगलों को जलाते हुए 
हाथ जोड़ता हूँ यारो ..माचिस हो जाओ 

शब्द मसीहा 





साँप


आओ करें मन की बात

बहुत समय के बाद आज फिर याद आया कि मैं भी ब्लॉग पर लिखता था .  कितना सही कितना गलत कभी सोचा ही नहीं था . लेकिन आज जब फिर मुझे "मन की बात " कहने का मन हुआ तब सोचा कि चलो अपनी उसी चौपाल पर चलते हैं . चलते हैं कोई अकेली कोशिश करते हैं ...अगर अच्छा लगा तो फिर महफ़िल जम जायेगी दोस्तों की.

वैसे आजकल राजनीति पर खूब रंग चढा हुआ है ..हर पार्टी और हर नेता एक नया मुखौटा तराश रहा है ..अपने लिए ..अपनी पार्टी के लिए ...और इस तलाश में ...अजब गजब तमाशे देखने को मिल रहे हैं . हर आदमी दूसरी ओर के आदमी को चोर , बदमाश और उचक्का समझता है .

परिवारवाद की फसल जोरों पर है . हर पार्टी के अंदर परिवारवाद के फूल खिल रहे हैं ....आज यही समाजवाद का मुखौटा है . वास्तव में समाज से अपना उल्लू सीधा करना ही आज का वास्तविक समाजवाद है . न तो समाज से सरोकार है और न ही सामाजिकता से . पहलवानी का शौक रहा है ....सो संसद में होती ही है ...इसलिए नेता जी भी आजकल संसद में हैं . लगता है कि सांसदों का ओलम्पिक हो ..तो निश्चय ही ...झगडे और गाली गलौज में ...किसी कि मजाल नहीं होगी कि कोई हमारे नेताओं के आस पास आ सके .

नैतिकता का रिपोर्टकार्ड भी अव्वल है अपने सूरमाओं का ...हर सब्जेक्ट ..यानी ...बालात्कार , अपहरण , लूट , मारपीट , गबन ...सब में महारत हासिल है ...वो क्या कहते हैं कि डिस्टिंक्शन प्राप्त किये हुए हैं . उस पर मंच हो अगर किसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का तब तो सोने पर सुहागा समझिए ....हर आदमी खुला सांड हो जाता है ...जिस पर चाहे चढ जाये . पैसा कमाओ , मौज मनाओ का राम बाण सभी जानते हैं . देश के महान नेताओं ने इस का आविष्कार किया था ....नाम क्या लेना ..आप सभी जानते हैं . 

आजकल नई राजनीति चल रही है ...चाय की राजनीति . खैर ये राजनीति चाय से चलकर इतिहास तक पहुँच गई है . कहीं पर महात्मा के पोते हैं ..कहीं पर महात्मा के हत्यारे ..कहीं कोई रामनामी पहने हैं ...कहीं कोई सबसे ज्यादा अपने ऊपर मुकद्दमे होने का रिकार्ड लेकर ...ताल ठोंक रहा है . इस देश की राजनीति के नायक हैं बड़े उर्वर ...नवासी साल की उम्र में भी बाप बन जाते हैं . मगर अब वे किसी पार्टी के लिए शर्मिंदगी की वजह नहीं हैं ....सम्मान का प्रतीक हैं ....सच को स्वीकारा  तो सही ....वो बात अलग है कि साले प्रेम जैसी चीज को भी अपना नहीं सके .....और भारत को अपनाने कि बात करते हैं .

हाँ , एक बात और है कि देश कि तरक्की और आधुनिकता का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है . विदेशी हीरोइने अब देखने के लिए हमारे देश के हर गरीब के सपने में आ सकती हैं . इस देश कि परम्परा रही है कि अथ्थियों का सम्मान करो . सो भैया सनी लियोन तक को हम गले से लगाने में नहीं हिचकिचाते . वाह क्या फिगर है भैया ...हाय ..सपने में एक बार आ जाये ...चाहे जान ले ले . वैसे नैतिकता का स्खलन तो पहले ही हो चुका है .
बस अब जरुरत है पाठ्यक्रम में कोकशास्त्र को शामिल करने की. हाँ ,एक बात और कि हर कक्षा में "लाइव डिमोंस्ट्रेशन" जरुर होना चाहिए . ताकि  लाल त्रिकोण वाली छतरियों का व्यापार चलता रहे ...और नौजवान ..खुलकर "मुकद्दर के सिकंदर " बनते रहे ..पोपट नहीं .

अब देश का झंडा सुना है कि वाकई इज्जत बचाने के काम आ रहा है . सुंदरियों ने अपने वक्ष का बहुत सुंदर इस्तेमाल किया है ...क्या इश्तेहार बनाया है खुद को ....दोनों ही पक्ष कि दो खूबसूरत सुंदरियों ने अपने वक्षों के बल पर बहुत से वोट अपनी पार्टियों के कब्जे में कर लिए हैं . बस  पोलिंग बूथ पर ले जाओ ...सौ प्रतिशत वोटिंग पक्की .

आपको क्या नहीं लगता कि अब देश राष्ट्रीय नेताओं के आतंकवाद से ग्रसित है . क्या भरोसा बचा है आम आदमी का इस सड़ी  गली व्यवस्था में ? क्या आप नहीं मानते कि चोर बदलकर चोर ही आने वाला है ? राष्ट्रभक्ति का बीज क्या अंग्रेजी भाषा और चालों ने गला नहीं डाला है ? 

हम ऐसे ही मुद्दों पर फिर बात करेंगे ....आइये शुरू करें .