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Friday 26 April 2013

वो जोड़कर चले हैं माल-ओ -असवाब इस कदर

अगर सौ बार जन्म लें "कादर" गिन न सकेंगे

उनकी हवस तो देखिये हर एक टुकड़े पर लगी है
मिल जाये गर जहान "कादर" सुखी हो न सकेंगे

उनको काटने का हुनर "कादर" मिला है विरासती
एक फूल का पौधा भी वो कभी यहाँ वो न सकेंगे

रहनुमा होने का वो दम भरते हैं बदस्तूर दोस्तों
घायल किसी को दो घूँट पानी "कादर" दे न सकेंगे

बद-दुआएं भी लौट आती हैं टकराकर उनसे सर
"कादर" पत्थर के सनम हैं मेरे वो मर न सकेंगे

उनको जुदा करने का है शौक बहुत "कादर"
देखना दोस्त वो खुद से भी कभी जुड़ न सकेंगे


केदारनाथ "कादर"

पेट की भूख तक नहीं सिमित, उनकी दाढे बड़ी मक्कार हैं " कादर"


पेट भर खाकर उनकी अक्सर, जिस्म की हैवान भूख जाग जाती है



केदारनाथ "कादर"
वो मेरी मुफलिसी को देखकर रो दिए ,


मुझसे नहीं पैसे से मुहब्बत थी शायद,

मेरे घर में अभी भी मेरी माँ रहती है ,

मेरी मुहब्बत का यकीन कैसे हो "कादर"



केदारनाथ "कादर"
अब भी उनको हमारी चाहत है "कादर "


तभी तो रोज जी भर के कोसते हैं हमें



केदार नाथ "कादर"

बहुत जरुरी है अब हमारे युवाओं के लिए

बहुत जरुरी है अब हमारे युवाओं के लिए


दिल, जिगर, फेफड़ों की कैद से निकलना

जुल्फ, रुखसार, पिस्तान से अलग सोचना

सिर्फ शायरी इन्ही पर नहीं होती मेरे दोस्त

खुदा ने बक्शी हैं दो आँखें हर आदमी को

एक आँख से दुनिया को देखो मेरे दोस्त

अपने शब्दों में इसे भी कहो तब देखना तुम

तुम्हें खुद पर प्यार आ जायेगा मेरे दोस्त

तुम्हारी सोच के पंख फैलाकर उड़ो जरा

तौलो तो जरा तुम कहाँ हो इंसानियत में





केदारनाथ "कादर"