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Friday 10 February 2012

सूरज



बहुत दिनों बाद -

आज सूरज देख रहा हूँ
ये बात न समझना
घर से निकला न था
निकला था अक्सर बाहर
अंजान पगडंडियों पर
लेकिन उधर नहीं चला था
जहाँ केवल तुम थे-अकेले

बहुत गहरी थी मेरी
यादों की काली रात
बड़ी बड़ी खाईयां थीं
कुछ कठोर चट्टानें भी
जो उगी थी मौन से


कल मेरे मौन ने मुझसे
कहा था अकेले में ही -
मैं उसकी हत्या कर दूँ
संवाद का सेतु तान दूँ
प्रीत के आँगन तक
मन ने निर्णय कर लिया
देखो आज सवेरा हो गया
बहुत दिनों के बाद मैं
आज सूरज देख रहा हूँ






केदार नाथ "कादर"






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