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Friday 19 August 2011

दोस्तों अब ये झंडा झुका दो

ये जो होता है सोचा नहीं था
ये बुरा खवाब अपना नहीं था
आदमी कैसे-कैसे बिक रहा है ?
हमको अब कोई तो जवाब दो
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो

पेट बच्चों का भरने की खातिर
एक माँ ने अपनी अस्मत लुटाई
है हर एक खतरे की जद में
चाहे बहना हो या चाहे भाई
अरे कोई तो इनको बचा लो  
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो

जान अपनी बचाने की खातिर
मियाँ ने बीबी किराये चढ़ाई
एक ग़रीब बेटे ने खुद ही
चाह में मुफ्त कफ़न की
बाप की लाश लावारिस बताई
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो


जब बहशी हवा बह रही है
गरीबों की बेटियाँ जल रही है
बिन ब्याहे ही कोखों में देखो
कितनी औलादें पल रही हैं
दोषियों को कोई तो सजा दो
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो


हर जगह है खून खच्चर
कहीं धमाके कहीं दुर्व्यवस्था
आदमी जानवर हो चला है
याद रखो इंसानियत को
न कुर्बानियों का ऐसा सिला दो
दोस्तों अब ये झंडा झुका दो

Kedar nath”kadar”



बाकी है अभी

कहाँ थमा आतंक सत्ता का अभी
क्यूँ कहें आज़ाद हम भी हैं अभी

रक्त पिपासा शांत कहाँ हुई अभी
स्वर्ग की आकांक्षा अधूरी है अभी

मुक्त हुआ नहीं मानव मन अभी
पथ ही पथ है मंजिल कहाँ अभी

हुए कहाँ शिक्षित मनुजों हम अभी
स्वातंत्रय बोध शिक्षा बाकी है अभी

गीत स्वतन्त्र हो गाना बाकी अभी
स्वराज सच्चा आना बाकी है अभी

केदारनाथ "कादर"

आँखों में

ने क्या ढूंढती हो तुम वीरान आँखों में
छेड़ो न तुम छिपे हैं कई तूफान आँखों में

क्या खोजती हो दफ़न की राख में अंगारे
बुझ गए चिराग अँधेरे हैं बाकी आँखों में

पक गए बाल मेरे, बोल भी अस्थिर सारे
अब बचे नहीं निशाँ मुस्कुराहटों के आँखों में

ये नज़र खामोश रही तो न होगी कोई चर्चा
बहुत से सवाल जगे हैं इन सोई आँखों में

केदारनाथ "कादर"




याद

याद उसकी दिल को जब जब आती है
खुशबू उसकी फजाओं में बिखर जाती है

दिल तो कहता है जोर से पुकारूँ उसको
जाते जाते मेरी आवाज़ ठहर जाती है
याद आता है अहसास जुदाई का मुझे
उसी लम्हे कयामत सी गुजर जाती है


क्या करूँ दिल था डूबा तो उभर न सका
वर्ना लोहे की कश्ती भी उभर जाती है


देख भर ले कभी उठा कर पर्दा "कादर"
कहते हैं नज़रों से तकदीर संवर जाती है

केदारनाथ "कादर"

इसी कारण वे लड़ रहे हैं




सोते लोग चलते नहीं लगते अच्छे
जागे लोग जगाते हुए चल रहे हैं


भीड़ में लोग आगे चल रहे हैं
चिराग उनके दिलों में जल रहे हैं

युद्धरत हैं स्वयं से सिरफिरे से
दूसरों के लिए ही वे जी रहे हैं

जन की,जीवन की, जनहित की
उमंगें वे ही महसूस कर रहे हैं

है गुंथी आभा विरोध की, आत्मा की
वे एक आदिम युग बदल रहे हैं

शब्दों की धार से बैठ अनसन पर
वे सत्ता को कुंठित कर रहे हैं

जीत हो इंसान की, व्यवस्था की
इसी कारण वे लड़ रहे हैं

केदारनाथ "कादर"



अब हो गया है मुझको
मेरे अकेलेपन से ही प्यार
जहाँ मैं हूँ
और तू पिया


अकेलापन मेरा
ले आया तुम्हें
नहीं अब बीच
कोई दूसरा


तुम्हारी सोच है
तुम्हारा साथ भी
कोई जाने नहीं
है हाथों में हाथ भी


फैली जुल्फें
मेरे सीने पे
देखती खुद को
आँखे तेरी


मेरी अधखुली आँखों में
बह रहा है समुद्र
प्रेम का
तैरते हैं जिसमें
हम तुम
मेरे अकेलेपन में
मैंने पाया
स्वर्णिम सुगन्धित
सान्निध्य तेरा


केदारनाथ  "कादर"  




आजाद

आजादी इक ख्याल है
तुम देखो न जागकर
क्यूँ पालते हो स्वप्न
तुम स्वतंत्र भारत के
सपनों के बीज भी
तुमने विदेशी ही चुने
भूल बैठे तुम पुरुषार्थ
रखते रहे बस शर्तें
हुए कहाँ तुम आजाद
आज भी गुलाम सोच
आज भी गुलाम तुम
तोड़ दो ये बंदिशे
और फिर जियो तुम
आजाद होकर निसदिन

केदारनाथ "कादर"

Friday 5 August 2011

चर्चा बेमानी हो गयी

यारो आजकल ईमान की चर्चा बेमानी हो गयी
बात अब सच्चाई की किस्सा कहानी हो गयी

देखिये हर एक को बनता है पोता गाँधी का
उम्र जिनकी रोज़ खून में नहाते हो गयी

हाथ में खंजर लिए जपते हैं जो राम राम
दौर-ए-अज़ब में जनता उनकी दीवानी हो गयी

जी ही लेंगे चार दिन अब यकीन है हमें
सुनते हैं तारीख चुनावों कि तय हो गयी

अब चुने हम किसको, कसाई हैं सब जगह
दिल की नगरी सबकी कब्र जैसे हो गयी

कृष्ण भी नाराज़ हैं और राम भी हैं खफा
सीता और राधा शाहरुख़ की दीवानी हो गयीं

Kedarnath “kadar”


अबोले-शब्द

बहुत से शब्द अबोले हैं
जब से छुआ है तुमने अँधेरे में
बहुत सी बातें हैं कहनी मुझे
पर सारे मेरे शब्द मदहोश हैं
तुम जो बांधे हो मुझे, प्रिये !
अपने कोमल बाहुपाश में

कुछ जो बोलूँ तो बोलूँ कैसे?
लव ये खोलूँ तो खोलूँ कैसे ?
तेरी छुअन से हुआ झंकृत
मेरा रोम-रोम तनमन का
तेरी यादों में यदि मद इतना
होगा क्या जब तुम होगी , प्रिये!
सच में साकार मेरी बाँहों में


Kedar nath “kadar”