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Thursday 28 July 2011


अजब शहर

अजब शहर है मेरा चलते पत्थरों का
दिल है, दर्द है, मगर प्यार नहीं है

चलते हैं साथ साथ बनकर हमसफ़र
हाथों में हाथ है पर एतबार नहीं है

हर एक है तैयार ताने हुए पत्थर
भीड़ में क्या कोई गुनाहगार नहीं है


कौन सुनता है दिल की सदा कहिये
व्यापार है वादों का , पर प्यार नहीं है

हम छोड़ भी दें शहर, न होगा विराना
इसे "कादर" इंसान की दरकार नहीं है



केदारनाथ "कादर"

1 comment:

  1. हर एक है तैयार ताने हुए पत्थर
    भीड़ में क्या कोई गुनाहगार नहीं है


    कौन सुनता है दिल की सदा कहिये
    व्यापार है वादों का , पर प्यार नहीं है


    bahut khub....
    jai hind jai bharat

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