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Saturday 25 June 2011



हम अब तैयार हैं अर्थी उठाने के लिए



जाने क्यूँ भूल जाते हैं लोग
सत्ता का महल बनता है
वोटों की छोटी छोटी ईंटें जोड़कर
उम्मीद के गारे से बनाई जाती हैं
ऊंची ऊंची सत्ता की दीवारें,
अपने पसीने की कमाई -चंदे से
पहुंचाते हैं तुम्हें जनमंडप-संसद में
और तुम देखकर व्यंजन वहां के
भूल जाते हो अपनी ही बारात
लेकिन याद रखो हमारी जरुरत
तुम्हें जीते जी ही नहीं है-
मरने के बाद भी हम ही
ले जायेंगे शमशान तक तुम्हें
अब फैसला जल्द करो कि-
मृत्यु रूपसी का वरण
कब करना है तुम्हें
हम अब तैयार हैं अर्थी उठाने के लिए

Kedarnath “kadar”


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