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Sunday 14 November 2010

दीपावली

एक दोस्त के लिए जो आज मेरे साथ नहीं है, कहीं दूर है और स्वास्थ्य लाभ कर रहा है , बहुत अकेला महसूस करता हूँ उसके बिना , आप ही कहो दिवाली कैसे मनाऊं , कुछ दुआएं मांगता हूँ सबसे उसके हक में ताकि वह जल्दी ठीक हो जाये . मैं जानता हूँ कि दोस्ती बहुत मजबूत रिश्ता है , पर इसे कोई नाम नहीं दे सकता


इस दीप पर्व पर दो नैना
तकते ये राह तुम्हारी हैं
तुम संग रहो तो जलें दीप
वरना ये कहाँ दिवाली है

मुस्कानों से मीठा है पर्व
दन्त पंक्तियाँ जुगनू हैं जैसे
सांसों में पूजा गंध भरी
प्रेमसनी आँखों से दिवाली है

न ख़त आया न बात हुई
दिल धडके है क्या बात हुई
पलपल छिनछिन बढ़ता जीवन
अब मेरी कहाँ दिवाली है

तुम दूर जलो मैं दूर जलूं
हम प्रेम में दीप बने दोनों
दोनों ही मुस्काते लगते हैं
दोनों की आँख में पानी है

तुम खुश रहना देता हूँ दुआ
मेरी भी हंसी तुम हँस लेना
जब फिर आओगी घर में
मानूंगा तभी दिवाली है

भूला मैं नहीं है याद मुझे
मुझसे जो तुम्हारा वादा था
ये दीप पर्व बने प्रेम पर्व
तुम बिन ये कहाँ दिवाली है

केदारनाथ "कादर"

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