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Monday 30 August 2010

पागल की पुकार

वो जोर जोर से चिल्ला रहा था

बचो , बचो, तुम सब बचो

मैंने पूछा किससे बचा रहे हो

क्यूँ बेबात शोर मचा रहे हो

वह बोला-

घर में रहो तो बचो

बाहर रहो तो बचो

जो बचा है बचाओ उसे

तुम्हे मारने की जंग जारी है

ताज्जुब है, तुम जानते हो

कोशिशें भी कर रहे हो

तुम्हारी कोशिशों के बाबजूद

क्या बचा पा रहे हो तुम

आदमी, जंगल, हवा, परिंदे

सभी के गले में तो

बांध दी है तुमने घंटी

तथाकथित अपने विकास की

जो ले जा रही है टुनटुनाते

तुम्हें धीरे धीरे फिर से

आदिम काल की ओर

जहाँ तुम्हें सुख मिलेगा

नई सृष्टि की सर्जना का

अगर रोकना है तो चलो

मिलाओ हाथ प्रकृति से

क्योंकि विनाश करने वाले

हाथ ज्यादा हैं सृजनशालियों से

केदार नाथ "कादर"

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