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Monday 9 August 2010

कहो कि मैं बागी हूँ

कहो कि मैं बागी हूँ
बोलता हूँ अखबारी भाषा
पर मत भूलो--
झकझोरता तो मैं ही हूँ
तुम्हारा जमीर
तुम्हारी सरकार
तुम्हारी पुलिस
मस्त है सत्ता कि अय्यासी में
तैयार हैं तुम्हारे नुमाईंदे
मेरी सोच के कत्ल को
लेकिन ये मेरी कविता
तुकांत या अतुकांत
पढ़ी ही जाएगी
गढ़ी ही जाएगी
ये कविता बंद नहीं होगी
तुम्हारी प्रतिक्रियाओं से
जब तक ये जनता की आवाज है
शब्द गूंजते रहेंगे तुम्हारे कानों में
मेरी ही इन अनगढ़ कविताओं के

केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com

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