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Sunday 11 July 2010

उससे पंजा लड़ाते हैं

आओ खेलें खेल नया हम , उससे पंजा लड़ाते हैं
दर्द को दर्द न समझे हम, दर्द में भी मुस्काते हैं

खून जलाकर रस्ता देखा, हमने उसके आने का,
मेरे इस पागलपन पर लोग, मेरी हंसी उड़ाते हैं

मेरी मुर्दा ख्वाहिशों से और मेरे टूटे सपनों से
बिना इल्म-ए-इश्क किये, दुनिया वाले घबराते हैं

रात अँधेरी आँचल में, दिन का सन्देशा लाई देखो
हिम्मत वाले ही यहाँ पत्थर को मोम बनाते हैं

होश होश जो रटते रहते , सदा होश खो जाते हैं
मनमौजी हैं गर्दिश मैं भी हम तो मौज मानते हैं.

माना खुदा है सबका मालिक हम भी कम तो नहीं
सौ-सौ टुकड़ों में बंटकर हम सौ-सौ रूप दिखाते हैं

माना तूने ही है रचा हमें, तुझसे ही पंजा लड़ाते हैं
तेरे दर्द को दर्द न समझे , दर्द में भी मुस्काते हैं


केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

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